top of page

अपने जीवन की जिम्मेदारी लें।

कुछ दिनों पहले की बात है,एक नाम खेल जगत की दुनिया में छाया हुआ था। वो नाम था - निकहत ज़रीन का। जिन्होंने इस वर्ष महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया है। खेलों और एथलीट के क्षेत्र में जाने का सपना देखने वाली महिलाओं के लिए उन्होंने एक उम्मीद जगाई है।

निकहत का जन्म तेलंगाना में 14 जून 1996 को हुआ था। उन्होंने महज 13 साल की उम्र में बॉक्सिंग सिखना शुरू किया और ग्रेजुएशन के दौरान अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुआत की और इस दौरान अनेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते। निकहत जरीन ने भले ही कम उम्र में बड़ी सफलता हासिल कर ली हो लेकिन,क्या उनका यहां तक पहुंचने का सफर वाकई में इतना आसान था कि कुछ वर्षों तक कठोर प्रकैटिस की और बन गई चैंपियन। जी नहीं जनाब, इन्हें इसके अतिरिक्त भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 2009 मे जब निकहत मुक्केबाजी की ट्रेनिंग ले रही थी तो उस समय इस क्षेत्र में लड़कियां ना के बराबर थी। उन्हें अधिकांश ट्रेनिंग लड़कों के साथ लेनी पड़ी और साथ ही रूढ़िवादी समाज का सामना भी करना पड़ा। उन पर हिजाब पहनने का दबाव डाला गया। उनके शॉर्ट्स पहनने पर आपत्ति जताई गई। लड़कों के साथ बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करने पर तरह तरह की बाते सुनने को मिलीं। लेकिन निकहत और उनका परिवार कट्टरवादी विचार धारा से लड़ता हुआ आगे बढ़ता गया और अपनी जीत की गूंज से सबको ज़बाब दिया।

हम सभी के जीवन में सभी चीजें हमारी मर्जी के अनुसार नहीं होती। है ना ? और इसी को हम किस्मत का नाम देकर सरेंडर कर देते हैं।खुद को सांत्वना देने लगते हैं कि किस्मत का खेल है लेकिन इसी किस्मत को बदलने में आप एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अपनी इन परिस्थितियों को अपने हिसाब से ढाल सकते हैं लेकिन अधिकतर लोग इन परिस्थितियों के अनुसार खुद ढल जाते हैं। लेकिन निकहत ज़रीन उन लोगो में से नहीं थी। कामयाबी के सफर में रूढ़िवादी सोच से सामना हो या कंधे का आपरेशन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और बॉक्सिंग रिंग के संघर्ष को ही हमेशा प्राथमिकता दी क्योंकि वे जानती थी कि कामयाबी के बाद ऐसी सोच पर अपने आप ही मुक्का जड़ जाता है और ऐसा ही हुआ भी।जो लोग पहले निकहत को ताने देते थे, उनकी आलोचना करते थे वहीं लोग आज उनके पिता को बधाईयां दे रहे हैं। मेरे प्यारे दोस्तों, यह जीवन आपका है तो इसको बेहतरीन बनाने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है इसलिए इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाइएगा ...। बहुत सी शुभकामनाएं!!!

Recent Posts

See All

अभी कुछ महीनों पहले अमेरिका मे डाक्टरों के बीच हुए सर्वे के मुताबिक महिला और पुरुषों का काम -ओहदा भले ही एक जैसा हो लेकिन आमदनी में पुरुष ही आगे रहते हैं। इस स्टडी के प्रमुख हेल्थ इकोनोमिस्ट क्रिस्टो

हुनर तो कई लोगों में होता है लेकिन इसके साथ हौसला हो तो मुकाम तक पहुंचना मुश्किल नहीं होता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है राजस्थान की रूमादेवी ने। राष्ट्रपति के हाथों नारी शक्ति अवार्ड पाने वाली रूमा देव

bottom of page