भारतीय संविधान और कानून ने महिलाओं को बराबरी के अधिकार दिए है ,लेकिन समाज की और परिवार की सोच बदलने में अभी भी कुछ वर्ष लगेंगे। आज हम 'वुमन एंपावरमेंट' यानि महिला सशक्तिकरण शब्द बहुत सुनते है। अधिक्तर इसका अर्थ लिया जाता है पैसा कमाने से। तो क्या सिर्फ पैसा कमाने से ही एम्पावरमेंट हो जाता है ? नहीं, यह तो सिर्फ उसका एक अंश मात्र है। घर में, परिवार में,समाज में अपनी बात रखना,गलत बातों का विरोध कर सकना, निर्णय लेने की क्षमता का विकास होना, आत्म सम्मान का होना आदि अनेक बातें है जो एम्पावरमेंट से जुड़ी हुई है।
हर व्यक्ति के लिए अपने पैशन को फ़ॉलो करना, अपनी इच्छानुसार जीवन जीना महत्वपूर्ण होता है।इस आधुनिक और विकसित समाज के अनेक भागों में आज भी घरेलु कार्य, जैसे कि खाना बनाना, बच्चों के पालन पोषण आदि की जिम्मेदारी महिलाओं के ऊपर ही है। वो कभी खुद के लिए कुछ सोच ही नहीं पाती कि मुझे भी कुछ बनना है। बेटी के रूप में जन्म,फिर थोड़ी सी पढाई , फिर शादी और फिर,बच्च्चे और घर की जिम्मेदारियां। बस.. इसी में बेटी,बीवी और माँ होने से पहले की पहचान वो ढूंढ ही नहीं पाती या फिर भूल ही जाती है कि खुद का भी एक वजूद है और जब कभी इसका ख़याल आता है तो आधी उम्र बीत चुकी होती है। लेकिन मैं आपको बताना चाहूंगी कि इसके बहुत से अपवाद भी है अगर हमारी यह सोच कि अधिक शिक्षित होकर या बहुत सारी डिग्रीयां लेकर ही एक महिला सशक्त हो सकती है तो जनाब यहाँ पर आप सरासर गलती पर है।
अभी हाल ही का एक उदाहरण देती हूं। मध्यप्रदेश के एक आदिवासी जिले की निरक्षर महिला दुर्गा बाई व्याम जो घरों में झाड़ू -पोछा करती थी। उनकी एक कला ने उनके जीवन में ऐसा बदलाव ला दिया कि इस वर्ष यानि 21 मार्च 2022 को उन्हें पद्म श्री अवार्ड से नवाज़ा गया है। उन्हें यह सम्मान आदिवासी क्षेत्र की गोंड भीति चित्रकला के लिए दिया गया। दुर्गा अनेक देशों में अपनी इस कला का प्रदर्शन कर चुकी है। गोंड़ भीति चित्रकला को आमतौर पर इन समुदायों की सभी महिलाएं अपने कच्चे घरों की दीवारों पर बनाती है। दुर्गा ने उसमे ही अवसर ढूंढ लिया। इन्ही दीवारों की चित्रकारी पहले वो कपड़ों और फिर कैनवास पर करने लगी और यहीं से उनके जीवन का 'टर्निंग पॉइंट' शुरू हो गया। शुरुआत में जो कैनवास शीट पर चित्रकारी के 150-200 रूपए मिलते थे वही अब एक चित्रकारी की क़ीमत 3500 -1.5 लाख रूपए तक मिल जाती है। यह है महिला एम्पावरमेंट का अनुपम उदाहरण। है ना ?
यहां मुझे कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है...
सजग, सचेत,सबल, समर्थ, आधुनिक युग की नारी हो तुम, मत मानो अब अबला खुद को,सक्षम हो बलधारी हो तुम्।