top of page

भीख मांगने से लेकर सम्मानित जीवन जीने तक का सफर....

आज मैं आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताऊंगी जो स्वभाव से बहुत शांत व शालीन है। English भाषा में सिद्धहस्त हैं,और कंप्यूटर की भी अच्छी जानकारी रखती है। उन्हें देखकर कोई यह अंदाजा भी नहीं लगा सकता कि एक साल पहले तक वह रेलवे स्टेशन पर भीख मांगती थी। करीब 36 साल की अमृता की कहानी शिखर से गिरकर टूटने और टूटकर फिर खुद को जोड़कर खड़े होने की है। मूलत:छपरा की रहने वाली अमृता मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। इन्होंने कंप्यूटर एप्लिकेशन में डिप्लोमा भी किया था। पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहतीं थीं परिवार भी अच्छा पढ़ा लिखा था। पिता एसडीएम और भाई बैंक में मैनेजर थे। लेकिन जैसे की आमतौर पर भारतीय घरों में होता है कि मां -बाप चाहते हैं कि बेटी को पढां-लिखा दिया है तो बस अब इसका विवाह करके अपनी एक बड़ी जिम्मेदारी पूरी करते हैं। अमृता के पिता की भी जिद थी कि रिटायरमेंट से पहले बेटी की शादी करनी है। तो लीजिए जनाब अनेक लड़कियों की तरह अमृता ने भी अपने सपनों को छोड़,घर वालों की ज़िद के आगे 2011 में जालंधर के एक एसआई से विवाह कर लिया।

विवाह के कुछ ही महीनों पश्चात उसे घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा।पति के इस दुर्व्यवहार ने अमृता का मनोबल पूरी तरह से तोड़ दिया।2015 में पति ने उन्हें घर से निकाल दिया तो वह पिता के घर लौट आई।अब एक विवाहित महिला के लिए सब कुछ छोड़कर अपने पिता के घर में रहना इतना आसान है क्या ? नहीं, बिल्कुल भी नहीं। मायके में उन्हें शरण तो मिल गई परन्तु तानों से मुक्ति नहीं मिली। फिर माता-पिता की मृत्यु के पश्चात 2019 मे भाई ने उन्हें घर से निकाल दिया।अब तक वह पूरी तरह से टूट चुकी थी। कभी आत्महत्या का विचार आता तो कभी सोचती कि संन्यास ले लूं।

आखिर में वो बिना टिकट के बनारस जाने वाली ट्रेन में बैठ गई। लेकिन ना जाने क्यों,रास्ते में ही आरा स्टेशन पर उतर गई। दो दिनों तक भूखी प्यासी प्लेटफार्म पर ही भटकती रही।कई बार भिखारियों की कतार में बैठी। कोई बचा हुआ खाना दे देता तो भूख मिटा लेती। लेकिन उस दौर में भी अमृता ने अपना संयम नहीं खोया। कोई कुछ पूछता तो बहुत सभ्यता से उतर देती। उसके इस व्यवहार को देखकर कुछ लोगों ने पटना के शांति कुटीर को इसकी जानकारी दी और फिर यहां से उसके जीवन में परिवर्तन आना शुरू हुआ। उसकी काउंसलिंग करके उसमें आत्मविश्वास जगाया गया।समय तो लगा परन्तु आज अमृता उसी शांतिकुटीर में अपने जैसे दूसरे लोगों की सहायता करती है। उसकी उच्च शिक्षा को देखते हुए अब शांति कुटीर उसके प्लेसमेंट का भी प्रयास कर रहा है।

यहां तो खैर अमृता की किस्मत शाय़द अच्छी थी कि वह ठीक जगह पर पहुंच गई वरना ...।ऐसा नहीं है कि सिर्फ परिवार या समाज ही लड़कियों के ख्वाबों के बीच रोड़ा बनते हैं। कभी कभी हम लड़कियां भी कोताही बरत जाती है और अपने सपनों के लिए नहीं लड़ती ,जैसे कि अमृता के केस में हुआ । लेकिन कुछ लड़कियां सामाजिक दुविधाओं को दरकिनार करके अपनी मंजिल पा ही लेती है। उम्मीद है आप भी उन में से एक बनेंगी।है ना ?

Recent Posts

See All

अभी कुछ महीनों पहले अमेरिका मे डाक्टरों के बीच हुए सर्वे के मुताबिक महिला और पुरुषों का काम -ओहदा भले ही एक जैसा हो लेकिन आमदनी में पुरुष ही आगे रहते हैं। इस स्टडी के प्रमुख हेल्थ इकोनोमिस्ट क्रिस्टो

हुनर तो कई लोगों में होता है लेकिन इसके साथ हौसला हो तो मुकाम तक पहुंचना मुश्किल नहीं होता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है राजस्थान की रूमादेवी ने। राष्ट्रपति के हाथों नारी शक्ति अवार्ड पाने वाली रूमा देव

bottom of page